श्री गुरु भगवान् महिमा

श्री गुरु भगवान अर्थात् बृहस्पति देव महर्षि अंगिरा एवं श्रद्धा (सुरुपा) के पुत्र हैं ।
महर्षि अंगिरा ब्रह्मा जी के दस मानस पुत्रों में से एक एवं चौथे व्यास के रूप में विख्यात हैं।
श्रद्धा ऋषि कर्दम की नौ पुत्रियों में से एक मानी जाती हैं।

बृहस्पति देव की तीन पत्नियाँ हैं-शुभा, तारा और ममता।
शुभा से सात कन्यायें उत्पन्न हुईं जिनके नाम हैं
भानुमति, राका, अर्चिष्मती, महासती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मति।
तारा से सात पुत्र और एक कन्या पैदा हुई। तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये।
इन्हीं भारद्वाज की पुत्री देववर्णिनी का विवाह रावण के पिता ऋषि विश्रवा से हुआ है,
जिनके पुत्र का नाम कुबेर है।

बृहस्पति के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त कराते हैं। बृहस्पति देव ने धर्मशास्त्र, नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तु शास्त्र पर ग्रन्थ लिखे। इनके द्वारा लिखित बृहस्पति स्मृति नामक एक स्मृति ग्रन्थ भी उपलब्ध है।
बृहस्पति देव को देवताओं का गुरु माना गया है
ये स्वर्णमुकुट व गले में सुन्दर माला धारण किये हुये हैं स्वर्ण निर्मित दण्ड इनका आयुध है।
ये पीत वस्त्र धारण किये हुये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इनका वाहन स्वर्ण से निर्मित रथ है। जिसमें पीत वर्ण के आठ घोड़े शोभायमान हैं। इनके चार हाथों में दण्ड रुद्राक्ष की माला, पात्र और चौथा वरमुद्रा से सुशोभित है।
भगवान शिव की घोर तपस्या से इन्हें देवगुरु का पद प्राप्त हुआ है।

अत्यन्त कृपालु व दया-निधान बृहस्पतिदेव अर्थात् गुरु भगवान जी सुख, समृद्धि व धन-धान्य देने वाले हैं।
इनकी आराधना करने से प्राणी अपने कष्टों से मुक्ति पा जाते हैं।

श्री गुरु भगवान जी के बीज मन्त्र 
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः ।
ऊँ बं बृहस्पतये नमः ।
ऊँ क्लीं बृहस्पतये नमः।
ऊँ गुं गुरवे नमः ।
ऊँ ऐं श्री बृहस्पतये नमः।

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