श्री सुनील शर्मा जी (पूज्य श्री छोटे गुरु महाराज जी)
जिन्होंने ज्ञान रूपी अंजन की सलाई से अज्ञान रूपी अंधेरे से बन्द हुई आंखो को खोल दिया, उन श्री गुरु छोटे महाराज को मेरा शत शत नमन
श्री सुनील शर्मा जी परम पूजनीय बाबू जी व माँजी के प्रिय पुत्र हैं आपका जन्म दिनांक 06-10-1968 की अमृत बेला में गोरखपुर में हुआ।
छोटे गुरु जी की प्रारम्भिक शिक्षा गोरखपुर में हुई।
स्नातकोत्तर परीक्षा के बाद आप नौकरी में लग गये, आप अत्यन्त गुणवान व धैर्यशाली थे।
सहनशीलता कूट-कूट कर भरी हुई थी। आप चहुँमुखी प्रतिभाओं के स्वामी हैं।
बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति होने के कारण प्रत्येक चीज को पूरी तरह जानने की तीव्र इच्छा होती जब तक
जान नहीं जाते तब तक शान्ति से नहीं बैठते। उनकी सक्रिय भूमिका उनके प्रभाव क्षेत्र में आने वाले लोगों को भी सक्रिय रखती है।
घर में धार्मिक वातावरण होने के कारण आपकी धर्म को जानने की जिज्ञासा की
भावना बलवती होती गई। आपका झुकाव बचपन से ही ईश्वर आराधना में रहा। अपने श्री बड़े गुरु महाराज जी को देखते,
उनके पास बैठे हुये भक्तों की बातें सुनते तो सोचते कि
पापा जी तो यहाँ बैठै होते हैं तो दूसरी जगह कैसे पहुँच जाते हैं। अब आपका वह समय प्रतीक्षा कर रहा था
जिस कल्याणकारी कार्य के लिये प्रभु ने आपको इस धरती पर उतारा।
आपकी गहन परीक्षाओं के बाद पूजनीय श्री बड़े गुरु महाराज जी ने आपको सन् 1998 में गुरु दीक्षा देकर श्री छोटे गुरु महाराज जी की पदवी से नवाज़ा |
एक होनहार पुत्र पिता को गुरु रुप में पाकर धन्य हो उठा यहां से आप अपना नया जन्म मानते हैं। पिता भी एक पुत्र को शिष्य रुप में पाकर धन्य हो उठे इस तरह एक
आदर्श मातृ-पितृ भक्त पुत्र अपने सदगुरु के प्रति समर्पित शिष्य के रुप में परिवर्तित हो गया जिससे समस्त देवगण-
श्री गुरु भगवान जी, माँ शेरा वाली, बाला जी महाराज और बाँके बिहारी का आर्शीवाद इनको प्राप्त हो गया।
जो भक्त गुरु जी को जिस भावना से भजता है वो उसको उसी रुप में दिखाई देते हैं हर कोई उनकी दिव्यता से परीभूत होकर उनकी और खिचाँ चला आता है।
जो भक्तों में भक्ति का मार्ग प्रशस्त कर भक्तों को हर प्रकार के विकारों से दूर करे वास्तव में वही गुरु है। ऐसा ही मेरे सदगुरु का कहना है।
गुरु जी का कहना है सन्त वही जो बिना कुछ कहें मनुष्य के अन्दर-बाहर उसके व्यवहार में परिवर्तन ले आये और शिष्य वही जो गुरु के आचरण से स्वंय को बदल लें।
गुरु जी के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनका व्यक्तित्व साधारण नहीं है उन्होने अपने
पिता की भावना से प्रेरित होकर अपना जीवन पथ बदल दिया उनका
चरित्र उन्हें महान बनाता है। उनके जीवन से ही हमें प्रेरणा मिलती है कि अध्यामिकता के पथ पर जीवन ऐसे पडाव से गुजरता है जहां संघर्षो को पार करना पड़ता है
वह कहते है यह रास्ता अनके कठिनाइयो से भरा हुआ है आसान नहीं है। गुरु जी के आचरण का अनुकरण करके व्यक्ति,
ऊर्जा, बुद्धि, शक्ति और आत्मविश्वास से भर जाता है।
सन् 2017 में पूज्य गुरु जी (श्री सुनील शर्मा जी) ने श्री गुरुधाम मन्दिर की स्थापना करायी। यहाँ गुरु जी के दरबार में जो रोग डाक्टर ने लाइलाज बता
दिये थे उन्हें स्वस्थ होकर जाते हुये देखा है। जो भक्त गुरु के दर पर आता है वह गुरु दर्शन मात्र से ही 50 प्रतिशत ठीक हो जाता है।
यह दर श्रद्धा और विश्वास का है। बिना विश्वास के समर्पण नहीं हो सकता बिना सर्मपण के गुरु जी प्राप्त नहीं हो सकते। गुरु जी के सानिध्य में आकर मनुष्य के
दुःख बुराईयाँ ईष्या, क्रोध अहंकार कब दूर हो जाते है पता ही नहीं चलता। निःशुल्क जन कल्याण की भावना, सबको एक समान समझना, जाँत-पाँत से दूर
होकर यहाँ हर धर्म के लोग आकर अपने दुःखो का निवारण व आने वाली परेशानियों का निराकरण, उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करते है। जिससे भक्त की आने वाली
जिन्दगी सुगम हो जाती है। मन को शान्ति मिलती है। श्री छोटे गुरु जी महाराज का पूरा जीवन ही हमारे लिये तथा आने वाली पीढ़ी के लिये प्रेरणादायिनी रहा है।
गृहस्थ जीवन के प्रत्येक दायित्व को निभाते हुये अपने गुरु के दिखाये मार्ग पर चलकर उनका नाम रोशन करना एक सदगुरु और समर्पित शिष्य को दायित्व
को निभाने वाला इन्सान कोई साधारण न होकर असाधारण मानव ही कर सकता है। एक इन्सान के अन्दर गुरु और शिष्य के समन्वय रुप को देखकर
भक्त लोग धन्य हो उठते है ऐसे सदगुरु को कोटि-कोटि नमन करते हैं।
श्री छोटे गुरु जी (श्री सुनील शर्मा जी) द्वारा लिखी कुछ न भुलाने वाली पक्तियाँ जो सबके हृदय को र्स्पश कर जाती है अपने पूजनीय बड़े गुरु जी महाराज के लिए
हे गुरुदेव !
‘‘ना मैं था, ना मैं हूँ,
ना मैं रहूँगा तुम्हारे बगैर !
महसूस खुद को मैने तेरे बिन कभी किया नही
तू क्या जाने कोई लम्हा, मैने तुम बिन
जिया नहीं.
मेरे पूज्य गुरु जी अपने भक्तों को ध्यान में रखते हुये अपने गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं……………….
‘‘किसी को भी ना तू उदास रखना
सबको अपने चरणों के पास रखना
गम ना आये किसी को भी
‘‘गुरुदेव‘‘ सब पर अपनी दया का भाव रखना